Saturday, December 8, 2012

आज गुलज़ार से मिला


आज गुलज़ार से मिला 
यकीं करना मुश्किल था 
अड्मायर ही करता रह गया 
नज़्म जो सुना मैंने 
होश संभालना मुश्किल था 
बस सुनता ही रह गया 
तालियाँ बजाना भूल गया था 
ऐसी ही थी कुछ ऊँचाई उनकी 
कुछ बोल पूछ न सका 
देखता ही रुक गया था 
उनकी आवाज़ की खुर्र्राहट 
ज़िन्दगी से रगड़ होती 
एक ताजगी सी थी 
हस्ताक्षर से बेहतर साक्षात्कार
की हकीकत में उलझा 
कौन सी कश्म्ह्कश में था 
सफ़ेद सईयारे में लिपटे 
उजाले से होते रु-ब-रु 
मैं एक नए मकाम में था 



-सौरभ राज शरण 

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